समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कॉड को लेकर उठ रहे सवालो और उनके बेतुके बयानों को देखकर हर कोई कह सकता है कि ये हमारे लिए नही है, मगर क्या वास्तव में ऐसा है, अगर ऐसा है तो दुनिया के बाकी देशों में यह कैसे काम कर रहा है या क्या इसके रहने से समाज में कोई बदलाव होगा या नहीं होगा?
समान नागरिक संहिता को लेकर आज भारत मे राजनीतिक पार्टियां अलग-अलग तरह के बयान दे रहीं हैं, किसी के अनुसार इसे लागू किया जाना चाहिए, जबकि दूसरे लोगो का मानना है कि इससे व्यक्ति विशेष की आस्था पर प्रभाव पड़ेगा।
कई लोगो को तो यहाँ तक मानना है कि समान नागरिक संहिता की कोई आवश्यकता ही नही है, मगर क्या समाज के प्रत्येक व्यक्ति को बराबर अधिकार दे देना गलत है या उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाना गलत है, अपने प्रसंग के माध्यम से आज हम इन्ही बातो का विस्तृत वर्णन करेंगे, जिसके बाद आप खुद इसके सही या गलत पहलू को पहचानने ने सक्षम हो पाएंगे तथा तरह-तरह के बयानों से खुद को सुरक्षित रख पाएंगे।
आज के प्रसंग में हम यूसीसी की प्रासंगिकता के साथ साथ इसके ऐतिहासिक रूप को भी समझने की कोशिश करेंगे कि आखिरकार इसका प्रयोग सर्वप्रथम कहाँ किया गया या यह किस सभ्यता की देन है।
विश्व मे समान नागरिक संहिता का इतिहास
विश्व मे रोम को समान नागरिक संहिता के जनक के रूप में देखा जाता है] रोम में सन 527 सी. ई. में ऐसे नियमों का एक मसौदा तैयार किया गया जिसके आधार पर कानून के समक्ष प्रत्येक व्यक्ति के पास समान अधिकारों की पेशकश की गई। रोम के अनुसार सभी के पास सामान अधिकार होना ही उस देश की वास्तव वृद्धि को दर्शाता था।
मगर उस समय संचार व्यवस्था या अन्य कारणों की वजह से इस प्रकार के नियम बाहर के देशों में अपनी पहुँच नही बना सके।
यूनिफॉर्म सिविल कॉड की आधुनिक अवधारणा
वर्तमान परिपेक्ष्य की बात करे तो आधुनिक रूप से सामान नागरिक संहिता को अपनाने वाला प्रथम देश फ्रांस को मन जाता है। यहाँ सन 1804 में समान नागरिक संहिता को इस भावना के साथ लागू किया गया कि समाज के पुरुषों तथा स्त्रियों को प्रत्येक चीज में बराबर का अधिकार दिया जाना चाहिए जैसे विवाह, उतराधिकार, वसीयत आदि।
भारत मे समान नागरिक संहिता की शुरुआत
भारत मे समान नागरिक संहिता ब्रिटिश भारत के काल से चली आ रही है] जो अभी तक लागू नही हो पाई है।
अंग्रेज सरकार ने तब कानून के समक्ष प्रत्येक व्यक्ति को एक करने के लिए ऐसा प्रस्ताव रखा था] मगर उस वक़्त तक भी ऐसे किसी नियम को लागू करने की कवायद या उत्साह लोगो के मन मे नही नजर आता था।
भारत के संविधान निर्माण के समय डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने ऐसे नियमो की पैरवी की जो सभी पर समान रूप से लागू होते हों, तथा जिनसे सभी को समान संसाधन व अधिकार दिए जा सकते हों, मगर उस वक्त उन्होंने इसकी आवश्यकता को यह कहकर ताल दिया कि अभी इसकी कोई जरूरत नही है।
भारत के संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड का स्पष्ट उल्लेख है कि राज्य अपने क्षेत्र में सामान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करेगी जिससे सभी मे समानता का भाव आ सके।
वर्तमान भारत मे 2016 में 21 वें विधि आयोग ने सर्वप्रथम लोगो से इस बारे में अपनी राय मांगी की क्या इसे लागू किया जाना चाहिए।
इस सर्वे की रिपोर्ट 2018 में सामने आई जिसमे कहा गया कि अभी इसे लागू नही किया जाएगा।
अब दुबारा से 2023 में 22 वें विधि आयोग ने विभिन्न व्यक्तियों या धार्मिक संस्थाओं से इस बारे में 30 दिन की अवधि के साथ विचार मांगे हैं।
भारत मे गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां यूसीसी
लागू है, जबकि वहाँ लगभग सभी धर्मों के लोग निवास करते हैं।
भारत जैसे विशाल देश मे UCC की आवश्यकता को बार बार महसूस किया जाता है इस पर विचार किया जाता है परंतु फिर से इसे ठंडे बस्ते में रख दिया जाता है।
राज्य के प्रत्येक व्यक्ति के सर्वांगीण विकास व उत्थान के लिए यूनिफॉर्म सिविल कॉड
जरूरी है, जो किसी भी धर्म से बिना छेड़छाड़ किये सभी को बराबर के अधिकार प्रदान करेगा।
प्रधानमंत्री का मंगलवार को दिया गया भाषण खासा जोर पकड़ता दिखाई
दे रहा है,जिसमें उन्होने समान नागरिक संहिता की
वकालत करते हुए कहा कि जब एक परिवार अलग-अलग नियमों से नही चल सकता तो ये देश कैसे
चल सकता है,हमारे देश के संविधान ने देश के प्रत्येक
व्यक्ति के लिए समान नियमों व अधिकारों की बात कही है।
रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस ने यूसीसी की खूबियों या कमियों पर चर्चा करने से परहेज करते हुए कहा कि
प्रधानमंत्री की टिप्पणियों का उद्देश्य उन मुद्दों,जिनका देश के लोग सामना कर रहे हैं]
से ध्यान भटकाना है
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर मायावती की सहमति
समान नागरिक संहिता को लेकर किये गए अपने हाल ही के प्रेस कॉन्फ्रेंस में BSP अध्यक्ष मायावती ने कहा कि UCC को बिना किसी धार्मिक भेदभाव के लागू किया जाना चाहिए, इससे किसी का बुरा नही होने वाला है, इसके तहत सभी को समान अधिकार दिए जाने की अनुसंशा की गई है, इसलिए इसमें किसी प्रकार की कोई दिक्कत नही है, इसे लागू किया जाना चाहिए।
यूसीसी पर क्या है, कांग्रेस की राय
यूसीसी जिसे लेकर भारत में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी हैं]
वहीं
इस मामले पर कांग्रेस ने अभी तक कोई स्पष्ट बयान नही दिया हैं।
भारत में यूसीसी को लेकर 3 जुलाई
को संसद की और से सुशील मोदी की अध्यक्षता में एक बैठक बुलाई गयी]
जिसमे
सभी से राय लेने की बात कही जा रही थी] मगर
कांग्रेस की और से जो देश का मजबूत विपक्ष है] ने
अभी तक इस मामले में अपनी चुप्पी नहीं तोडी है] शायद
वो इस मामलें में अभी थोड़ा और इंतजार करना चाहते हैं] जब
तक कि यूसीसी का नमूना बनकर तैयार न हो जाये या वे 2024 के
लोकसभा चुनावों के लिए ऐसा कर रहे हैं] अभी
इस बारे साफ कुछ नहीं कहा जा सकता है।
यूसीसी पर जमायत-उलेमा-ए-हिंद की राय
यूसीसी पर जहां एक और सभी से राय के लिए कहा गया है] उसी के तहत जमायत उलेमा लाW-कमीशन को अपनी रिपाॅर्ट सौंपने जा रहा है] जिसमें शरीयत कानून को ना हटाने की बात
कही गयी है] साथ
ही कहा गया है कि इसके अलावा अन्य कोई कानून हमें मंजूर नही।
इसके अलावा इन्होने कहा कि यूसीसी के मुद्दे पर सभी धर्मो से राय ली जानी चाहिए व ऐसा कानून देश की एकता के लिए एक बड़ा खतरा है।
विधि आयोग को यूसीसी पर 19 लाख से अधिक सुझाव प्राप्त हुए हैं। फीडबैक
सबमिट करने की अंतिम तिथि 13 जुलाई
है।
एक संसदीय समिति ने पूर्वोत्तर और देश के अन्य
हिस्सों के
आदिवासियों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखने का सुझाव दिया
है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने यूसीसी के विचार
का समर्थन करते हुए
कहा कि यह "समय की आवश्यकता" है।
विपक्ष ने यूसीसी की आलोचना करते हुए कहा है कि
यह पूरे देश पर