बंगाल हिंसा

 बंगाल हिंसा और उसके कारणः-

बंगाल भारत के पूर्व में स्थित एक ऐसा राज्य जिसने समय के विभिन्न रूपों को देखा तथा जो कभी मुगलों के तो कभी यूरोपियों के अधिकार में भी रहा, आखिरकार बंगाल का विलय भारत में हुआ इसी के साथ यह भारत का एक अभिन्न रहा। 

बंगाल हिंसा


वर्तमान चर्चा में क्यों?

वर्तमान में बंगाल राज्य अपने यहां फैली हिंसा के कारण काफी चर्चा में है, आज के प्रसंग में हम आपको वहां की स्थिती के बारे में बताने का प्रयास करेंगें, जिससे आप वहां के हालातों के बारे में सही से अनुमान लगा सकें। 

बंगाल जैसे शांतिप्रिय प्रदेश के बारे में कोई इस बात का शायद ही अनुमान लगा सके कि वहां हर एक चुनावी शुरूआत में हिंसा का होना लगभग तय होता है, मगर इस प्रकार की हिंसा क पीछे आखिर क्या वजह हो सकती है, कि जो बंगाल एक समय में व्यापार का केन्द्र हुआ करता था, जहां बडे-बडे विद्ववान हुए हैं, वहां ऐसी हिंसा का भला क्या काम!

बंगाल हिंसा की शुरूआतः-

बंगाल में हालिया घटना को देखें तो पता चलता है कि सरकार के द्वारा जैसे ही पंचायत चुनाव के लिए घोषणा की जाती है तो वहां हिंसा की शुरूआत हो जाती हैं। 

पहले ही जब एक कांग्रसी की हत्या के साथ-साथ कई लोंगो के घायल होने की भी खबर मिलती हैं। 

बंगाल हिंसा के प्रमुख कारणः-

 वर्चस्व की लड़ाई- बंगाल जैसे समृद्धशाली प्रदेश में प्रत्येक दल अपनी सरकार बनाना चाहता है, इसके साथ ही उनमें इस वर्चस्व को स्थापित करने की होड़ की विजय पूर्ण बहुमत के साथ हुई, वहां के लोगो के लिए उनके गले की फांस बन जाता है। 

पहले ही दिन हुई हिंसा इस बात का सबुत है, जिसमें कई लोगों को अपनी जान बचाने के लिए दूसरे राज्यों तक में शरण लेनी पडी। 

पार्टियों की अनबनः- बंगाल में दो पार्टियों के बीच अनबन होना बडी ही आम बात है, जो वहां के लोगों के लिए भी अब शायद कोई अलग बात नही रह गई है, मगर ऐसी ही छोटी बाते कब बडी बन जाती है, उनका कुछ भी पता नहीं चलता है, इस कारण वहां हिसा होने में ज्यादा समय नहीं लगता है। 

चुनावों को धर्म विशेष से जोडनाः-

बंगाल में  कुछ राजनितिक पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए लोगों को धर्म के आधार पर बांटने का काम करती हैं जिससे वहां के समुदायों में इस प्रकार की बाते कब बडी हिंसा का कारण बन जाते है, ये समझना भी मुश्किल बात है। 

मगर आमजन के मन में यह बात उठना भी सहज है कि क्यों बंगाल में एक भी ऐसा चुनाव नहीं होता जो बिना हिंसा के हुआ हो। 

बंगाल में आज जिस प्रकार की स्थिती है, जो वहां कि लाॅ एंड प्रशासन पर भी सवाल उठाती है कि कैसे इस प्रकार की हिंसा को समय रहते नहीं रोक दिया जाता है?

बंगाल में हिंसा के कारण सरकार को नामांकन केन्द्र से एक किलोमीटर तक के क्षेत्र में धारा 144 का प्रयोग करना पडा, यहां तक कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस हिंसा को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने के लिए कहा। 

बंगाल में हमेशा राजनीतिक हिंसा होती रही है. पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का हिंसक इतिहास रहा है. राज्य ने पहली बार 1960 के दशक में राजनीतिक हिंसा देखी। राजनीतिक हिंसा में वृद्धि में योगदान देने वाले तीन प्राथमिक कारक इस प्रकार हैं। इसका मुख्य कारण राज्य की बढ़ती बेरोजगारी दर और कानून के शासन पर सत्तारूढ़ दल का प्रभुत्व है। इसके अलावा, एक महत्वपूर्ण योगदान कारक यह है कि जिस तरह से भाजपा ने दीदी के गढ़ में बढ़त हासिल की है, उससे तनाव बढ़ गया है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा में एक जन प्रतिनिधि के सवाल के जवाब में कहा गया कि वाम मोर्चा सरकार 1977 से 2007 तक सत्ता में रही. इस दौरान पश्चिम बंगाल में बहुत् ज्यदा सन्खया मे राजनीतिक हत्याएं हुईं. वामपंथी हिंसा का एक और उदाहरण सिंगुर और नंदीग्राम आंदोलन है।


बंगाल में हिंसा या राजनितिक हिंसा!

बंगाल जो अंग्रेजों के समय से ही एक काफी स्थान रहा है, और जहां से भारत की अर्थव्यवस्था ने काफी तरक्की की थी, जो आज भी जारी है, तो ऐसे जगह पर बार-बार होने वाली इस प्रकार का हिंसा का आखिरकार क्या मतलब हो सकता है!

पिछले कुछ सालों में देखे तो हिंसा का ग्राफ बढता ही चला जा रहा है, फिर चाहें वहां किसी भी प्रार्टी का शासन क्यू ना हो, ऐसे में ये सवाल तो आखिर मन में उठता ही है कि इतनी हिंसा क्यूँ!

बंगाल में राजनितिक हिंसा के कारण किस प्रार्टी को कितना नुकसान या लाभ हुआ इससे इतर यह बात ज्यादा जरूरी है कि वहां की होने वाली राजनितिक हिंसाओं के कारण आमजन का जीवन कैसा होता होगा। 

जब आप को पता हो कि अगले महीने से चुनावो की तैयारी शुरू होने वाली है तो लोग चुनावों की तैयारी करते होंगंे या अपने परिवार को बचाने की शायद यही ज्यादा जरूरी भी है। 

एक आदर्श दुनिया में एक बहुसंख्यक नियम प्रणाली को क्रूरता को प्रतिबंधित करने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करना चाहिए। जैसा कि राजनीतिक रणनीतिज्ञ नीरा चंदोक कहती हैं कोई भी सभा कैसे युद्ध छेड़ सकती है या ऐसा करने वाले लोगों का समर्थन कैसे कर सकती है, जब उनमें विश्वासघात को संबोधित करने और आम समाज और संसद में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से समानता की तलाश करने की क्षमता है।

बंगाल हिंसा में सुप्रिम आदेश

बंगाल में पंचायत चुनवों के ऐलान के साथ ही भड़की हिंसा के मद्देनजर बंगाल में अर्द्धसैनिकों की तैनाती को लेकर सुप्रिम कोर्ट ने ममता सरकार व चुनाव आयोग पर सख्त टिप्पणी करते हुए वहां सैनिको की तैनाती का फैसला बहाल रखा है।

सुप्रिम कोर्ट ने कहा कि सुरक्षित व निष्पक्ष चुनाव ही लोकतंत्र की नीवं है, ऐसे में बंगाल में सैनिको की तैनाती से किसी को क्या दिक्कत हो सकती है, इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि सुरक्षा के लिए तो चुनाव आयोग ने ही कहा था, ऐसे में सुरक्षा कैसे मुहैया कराई जाती है, इसकी चिंता करना आपका काम नहीं है।